Sunday 27 October 2013

मौसम बदल रहा है ::::::


ये कहता है मुझसे बादल
देखो ! मौसम बदल रहा है.
भोर है ओस से नहाई
शबनम मोती सा पल रहा है.
उत्तर से दक्षिण को चल रहा है
सूरज अपनी रंगत बदल रहा है.
आसमाँ की नीली गोद में
सुबह संतरी शाम सा मचल रहा है.
जेठ दुपहरी थक गयी है
कार्तिक जाड़ों में ढल रहा है.
गर्मियों की सांझ बीती  
रुत पुराना चोला बदल रहा है.
काली घनेरी रातों में
चाँद तन्हा ठिठुर रहा है .
हाँ ! सच कहता है ये बादल
मौसम फिर से बदल रहा है l

Thursday 17 October 2013

और जिन्दगी बहती रही.......

शाम ढलते यूँ नज़ारा था जमीनों-आसमां के बीच 
चाँद उकडूं बैठा था तनहा रात की छत पे
सितारे झपकियाँ ले रहे थे आसमाँ की गोद में
झील ख़ामोशी से बैठी थी पहाड़ियों के बीच
हवाएं गुफ्तगू करती रही चनारों से जाने क्या
समन्दर देह से नमक उतार चांदनी में नहाता रहा
मकान खड़े-खड़े उंघते रहे सड़कों के किनारे
रास्ते हर ओर से दौड़ते रहे मंजिलों की ओर
और जिन्दगी बहती रही हर रोज की तरह !