जमा खर्च !
बीती रात जेब खाली थी
मगर आँख खुलते ही
जेब टटोला तो
हर बार की तरह
फिर एक दिन निकला
खर्च करता रहा जिस्म
उसे जहन के इशारे पे !
दोपहर के उतरने
और शाम के आने से पहले
दिल ने शाम के हिस्सों पे दावेदारी की
समझौतों पे बात कुछ ठहरी तो
मगर झुकी शाम खर्च हुई
फिर तुम्हारे इंतज़ार में !
दिल डूब गया जिस्म के किसी कोने में
रात बिना ना-नुकुर वक्त के हाथों गुजर गई
और फिर एक कीमती सा दिन
लम्हों में टूटकर हमेशा के लिए
खनकते हुए सिक्कों सा खर्च हो गया !
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