Friday 9 January 2015

भगवान !

भगवान मेरे घर के दालान में
रोज़ मिट्टी खेलता है !
अपनी छोटी सी साइकिल से
धरती के चक्कर लगाता है !
हर दिन आसमान रंगता है ...
नया मौसम बनता है !
सूरज बनकर जागता है
चाँद बनकर सोता है !
फूल की तरह हंसता है
बारिश की तरह रोता है !
फुदक-फुदक कर जमीन से
अम्बर छूने की कोशिश करता है !
तितलियों के पीछे दौड़ता है
गिलहरी के जैसे बिस्किट कुतरता है !
बात-बात पर मचलता है,रूठता है,
कनखियों से देखता है फिर मान जाता है !
अपनी नन्ही-नन्हीं उँगलियों पर
ज़िन्दगी की गणित बिठाता है भगवान !

Wednesday 7 January 2015

वक्त !

वो वक्त था
जो कभी
मेरे पैरों से
जमीं ले गया
वही वक्त ...
देखो आज
सर से मेरे
आसमान भी ले गया !

ग़म ज़रा सा !

आँख के जज़ीरे पे हमने रखा था
चख़ा हुआ पुराना कोई ग़म ज़रा सा !


एक हिचकी याद की ऐसी आई
के छलक के गिर गया शबनम ज़रा सा !

अश्क़ों का दिल से भला रिश्ता क्या है ?
हर ताज़े ज़ख्म पे मरहम ज़रा सा !

ऐसी गरीब हो गई आँखें इन दिनों
के नहीं झरता आंसुओं का मौसम ज़रा सा !

Tuesday 6 January 2015

संवेदना के चलते..




बहुत आसन था

तुम्हारा मुझमे घटना
और हमेशा के लिए जुड़ जाना
मगर तुम घटना नहीं चाहते
जुड़ते ही घुटन होती है
तुम्हारी स्वछन्दता को
बस तुम्हारी इसी संवेदना के चलते
मै घटती हूँ तुममें हर क्षण !