Wednesday 18 June 2014

तुम्हरी गली में..वो नाजुक सी लड़की !

याद् है मुझे तुम्हारी गली में वो
नाजुक सी लड़की ..
सहमती लरजती जरा सी लजीली
नजर झुकाती-मिलाती फिर ठहर जाती
फुदकती गिलहरी कोई पेड़ पे जैसे
आम की बौरों पे कोयल सी कूकती !
याद है मुझे वो
तुम दोनों का लड़कपन
लड़ना-झगड़ना, रूठना-मनाना
दिनभर सताते रातों को जगाते
एक दूसरे में डूबे जैसे
इसी जहाँ में हों किसी और जहाँ के !
याद है मुझे वो
तुम्हारी आख्रिरी लड़ाई
जैसे मादक शाम में घुली हो
रात की स्याह तन्हाई
जैसे दिनरात के साथ को
किसी ने हो नजर लगाई !
आज भी वो नाजुक सी लड़की
किसी कुण्डी सी है खटखटाती
आज भी तुम्हारे दिल के दरवाजे
कितने मजबूत से हैं..
आज भी तुम किसी सख्त
शीशम के किवाड़ से हो बंद !
याद है मुझे...
आज भी वो
तुम्हारी गली की
नाजुक सी लड़की !

1 comment: