Wednesday 18 June 2014

तुम्हरी गली में..वो नाजुक सी लड़की !

याद् है मुझे तुम्हारी गली में वो
नाजुक सी लड़की ..
सहमती लरजती जरा सी लजीली
नजर झुकाती-मिलाती फिर ठहर जाती
फुदकती गिलहरी कोई पेड़ पे जैसे
आम की बौरों पे कोयल सी कूकती !
याद है मुझे वो
तुम दोनों का लड़कपन
लड़ना-झगड़ना, रूठना-मनाना
दिनभर सताते रातों को जगाते
एक दूसरे में डूबे जैसे
इसी जहाँ में हों किसी और जहाँ के !
याद है मुझे वो
तुम्हारी आख्रिरी लड़ाई
जैसे मादक शाम में घुली हो
रात की स्याह तन्हाई
जैसे दिनरात के साथ को
किसी ने हो नजर लगाई !
आज भी वो नाजुक सी लड़की
किसी कुण्डी सी है खटखटाती
आज भी तुम्हारे दिल के दरवाजे
कितने मजबूत से हैं..
आज भी तुम किसी सख्त
शीशम के किवाड़ से हो बंद !
याद है मुझे...
आज भी वो
तुम्हारी गली की
नाजुक सी लड़की !

Monday 26 May 2014

जमा खर्च !


जमा खर्च !

बीती रात जेब खाली थी
मगर आँख खुलते ही
जेब टटोला तो
हर बार की तरह
फिर एक दिन निकला
खर्च करता रहा जिस्म
उसे जहन के इशारे पे !
 
दोपहर के उतरने
और शाम के आने से पहले
दिल ने शाम के हिस्सों पे दावेदारी की
समझौतों पे बात कुछ ठहरी तो
मगर झुकी शाम खर्च हुई
फिर तुम्हारे इंतज़ार में !
 
दिल डूब गया जिस्म के किसी कोने में
रात बिना ना-नुकुर वक्त के हाथों गुजर गई
और फिर एक कीमती सा दिन
लम्हों में टूटकर हमेशा के लिए
खनकते हुए सिक्कों सा खर्च हो गया !

Monday 20 January 2014

उसने कहा था !


बहुत जी करता है के -
घुली-घुली सी खुशबू हो हवा में
सूरज समन्दर में डूबने को हो
और मैं मीठी झील किनारे तेरा इंतज़ार करूँ !
नींद ने करवट न ली हो पलकें झुकी न हो
जागती आँखों से ख्बाबों में मैं तेरा दीदार करूं !
रात न डूबी हो सुबह न जागी हो
चाँद मद्धम-मद्धम पिघल रहा हो बादलों में  
ऐसे तारों की छाँव में मैं तुझसे इकरार करूँ ! 
सोंधी-सोंधी ,थोड़ी शबनम में भीगी हुई
गुलाब की पंखुड़ी सी तुम आओ
और फिर मैं तुम्हें जी भर के प्यार करूं ! 

Saturday 11 January 2014

कुदरत !

कायनात के सातवें आसमान से लेकर
दूसरे छोर तक जो नीलम के फाहे की कनात
बिछी देख रहे हो न ! यही महफूज रखती है
जमीं के हर जर्रे को अपने आगोश में समेटे हुए !

 
उमस भरे मौसम में हवा बिखरा जाती है अपने साथ
शाम का गुलाबी आकाश.. एक पुरवाई का झोंका 
चाँद के तकिये का कुछ चटकीला रेशमी नूर का टुकड़ा
उन्हें नर्म तारों की रौशनी से हौले-हौले बुनते हुए !

 
बादल फूटते है..बिजली खुद से ही चौंक जाती है
फुहारे खेलती हैं धरती के आंगन में फुदकती हुई
भीगता है जिस्म खिलता है मन हरियाले मौसम सा
सूरज झांकता है दरीचे से सतरंगिया इन्द्रधनुष बिखराते हुए !

 
सर्द रातों में भी आंच के फूल खिलाने के लिए
वादियां चुनती रहती हैं सुनहरे फूल किरणों के
जिस्म जम जाते हैं बर्फीले पहाड़ों की तरह
आँख रोशन है चरागों सी..लबों के अलाव सुलगाते हुए !

Saturday 4 January 2014

अंजुल भर धूप !


 
 
   जब कांपते हैं जुगनू,थरथराती है हवा  

 ठिठुरती है रात अपने अन्धेरेपन को ओढ़े

 ओस गिरती है आसमाँ से जमीं के हर जर्रे पे

 शज़र दांत किटकिटाते हैं..फूल कुम्हलाएँ है सारे

 नदियाँ जम गई हैं एक ही ठिकाने पे ,पाँव हिलते नहीं

 वादियाँ बैठी हैं अपने जानों में मुँह छुपाये.. ऐसे में

 कहीं से भर लाओ जानम ! एक अंजुल भर धूप.. या
 
भर दो मेरी हथेली में अपनी रेशमी साँसों की तपिश.

Friday 3 January 2014

याद आउंगी !

                                                                                                         
सुनाते रहते हैं मुझको सुबहो-शाम

जो कोई नहीं होगा सुनने को तो याद आउंगी.

सुबह की ओस से शिकायतें करतें हैं मेरी

धुंध में लिपटी हुई नहीं आउंगी तो याद आउंगी.

गुनगुनी धूप से मद्धम होगी जो तुम्हारी आँखें 

मेरे आंचल की छाँव खोजोगे तो याद आउंगी.

दिनभर की खबर सुनाती थी मैं विविध भारती सी

किसी चिड़िया को चहकते देखोगे तो याद आउंगी.

चुपके से कानों में जो कह देती थी प्यारी बातें

हवा जब शाम ढले छू के कुछ कह जायेगी तो याद आउंगी.

रात जब मरमरी बाहों को बेचैन खोजोगे तुम

अजनबी तकिये पे आंसू बहाओगे तो याद आउंगी.

किसी सावन ..कोई पतझड़ ..किसी बहार ..

मौसम के किसी भी रंग से गुजरोगे तो याद आउंगी.

अभी रोज गुजरते हो तुम मुझसे एक आदत की तरह

जब मिट्टी में मिट्टी सी मिल जाउंगी तो याद आउंगी !

अच्छी नहीं होती !


नहीं अच्छा !!!


तेरा एक साथ !


lllllll: एक पर्दा :lllllll