Thursday, 23 June 2016

अल्ला करे !

अल्ला करे
कोई चटाए तुम्हें
बाबा जी की बूटियाँ
कोई ले जाए ..
गुलबशाँ बाबा की मजार पे
उतरवाए नजर
धूर दे तुमपे कोई
मरघट की राख सारी 

दो नजरों का जादू उतारने को
बुलाये जादूगर
कोई बाँध के टोटका
ले जाए सारे टोने-वोने
आबे-ज़मज़म से हाय
नहलाये कोई
कोई तो करे ऐसा
फूंक दे मन्तर-वंतर
के फिर कभी न
इश्कियाए कोई.. अल्ला करे !

Friday, 17 June 2016

जिस्म और लहू


आंच का दूर तक जिस्म से कोई रिश्ता नहीं
ये तो खून है जो गर्म है, उबाल रखता है !
गुस्सा आ जाए तो कैसे-कैसे बवाल रखता है
लहू के दौड़ते रहने से जिस्म दहक जाता है
छू जाए इक नज़र रेशमी तो बलक जाता है !
ये झूठ है के बदन ताप पे कभी चढ़ता है
इश्क़ सा कभी मुझपे, कभी आप पे चढ़ता है !
ये कोरी मिट्टी है, बर्फ है, पानी सा बहा जाता है
वरना कहो तुम ही ....क्या
कोई आग दूसरी आंच को राख़ करती है ?
गर करती तो ये ज़िस्म क्यूँ फ़ानी होता
इक उम्र का ही नाम क्यूँ जवानी होता ?
हाँ ! ये खून है जो उबाल रखता है
गर्म होता है तो कैसे-कैसे बवाल रखता है !

Thursday, 16 June 2016

फ़ातिहा

     
           
                                      
                       इक शाम के लिए बेहद ज़रुरी है 
                     दिन की रुख़्सती पे फातिहा पढना !

Wednesday, 15 June 2016

नींद

नींद मुझे रोज़ ख़्वाबों के जंगल फिराती है
ख्वाब मुझे रोज़ सहर के किनारे छोड़ जाते हैं !

Tuesday, 14 June 2016

ऐ वक्त !


माना के मुनासिब है 
तेरा यूँ चलते जाना 
उस रोज़ कुछ देर
ठहर जाता तो ..
तेरा क्या जाता 
कमबख्त ऐ वक़्त !

Friday, 10 June 2016

फ़ासले

नज़र मिली तो सारे फ़ासले झूठे निकले 
दिल के आबले सच्चे थे मगर गिले झूठे निकले !