चाँद उकडूं बैठा था तनहा रात की छत पे
सितारे झपकियाँ ले रहे थे आसमाँ की गोद में
झील ख़ामोशी से बैठी थी पहाड़ियों के बीच
हवाएं गुफ्तगू करती रही चनारों से जाने क्या
समन्दर देह से नमक उतार चांदनी में नहाता रहा
मकान खड़े-खड़े उंघते रहे सड़कों के किनारे
रास्ते हर ओर से दौड़ते रहे मंजिलों की ओर
और जिन्दगी बहती रही हर रोज की तरह !
सितारे झपकियाँ ले रहे थे आसमाँ की गोद में
झील ख़ामोशी से बैठी थी पहाड़ियों के बीच
हवाएं गुफ्तगू करती रही चनारों से जाने क्या
समन्दर देह से नमक उतार चांदनी में नहाता रहा
मकान खड़े-खड़े उंघते रहे सड़कों के किनारे
रास्ते हर ओर से दौड़ते रहे मंजिलों की ओर
और जिन्दगी बहती रही हर रोज की तरह !
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