Friday 9 January 2015

भगवान !

भगवान मेरे घर के दालान में
रोज़ मिट्टी खेलता है !
अपनी छोटी सी साइकिल से
धरती के चक्कर लगाता है !
हर दिन आसमान रंगता है ...
नया मौसम बनता है !
सूरज बनकर जागता है
चाँद बनकर सोता है !
फूल की तरह हंसता है
बारिश की तरह रोता है !
फुदक-फुदक कर जमीन से
अम्बर छूने की कोशिश करता है !
तितलियों के पीछे दौड़ता है
गिलहरी के जैसे बिस्किट कुतरता है !
बात-बात पर मचलता है,रूठता है,
कनखियों से देखता है फिर मान जाता है !
अपनी नन्ही-नन्हीं उँगलियों पर
ज़िन्दगी की गणित बिठाता है भगवान !

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