Friday, 4 November 2016

साजो-सामान



यादों के तहखानें में कभी ख़ुशी की धूप नहीं गिरती
नमी गिरती रहती है मुसलसल !
कुछ ज़र्द बीमार लफ्ज़ खाँसते हैं अक्सर
उचटी हुई नींद के दीवार के पीछे.. पर
बहुत से खतों का रंग सांवला पड़ गया है
अब पढने में नहीं आते !
जैसे अब याद नहीं आता उस अत्तर का नाम
जिसकी खुशबु में तर रहता था वो
और अब पूछो भी तो कैसे
तसव्वुरात की मुलाकातों में बातें कहाँ हो पाती हैं !
इकतरफ़ा बयान होता है, जवाब कहाँ आते हैं !
बहुत ज़ोर दो दमाग़ पे तो एक उजली हँसी याद आती है
और एक झक्क सुफैद शर्ट
जिसकी इक दफ़ा तारीफ़ क्या कर दी
हर रोज़ बदन पर चढ़ी ही रहती थी
अल्ला जाने कब धोता-सुखाता था !
पता नहीं क्या हुई वो सब चीजें,
जो मर जाते हैं सिलसिले तो क्या
साथ चीजें भी मर जाती हैं ?
इन साजो-सामान की कोई कब्रगाह होनी चाहिए
मोहब्बत दिल में दफ़न की जाएँ जब
इन्हें भी कहीं दफनाना चाहिए
के जब कभी मौका लगे.. जाकर इक चादर
फूलों गुँथी इनकी मज़ार पर चढ़ानी चाहिए !
..
कहो !
क्या कहते हो तुम ?

Thursday, 3 November 2016

मोहब्बत सा कारोबार



न उठाई, न गिराई, न मिलाई ही नज़र
न लब के आख़िरी कोने में कोई मुस्कान दबाई
न जुबाँ से कोई इकरार-ए-लफ्ज़ कहे.. न सुने
न दिल में उतरने को आँखों के जीने लगाये
न दिन-दिन भर बन्दगी, न दुआ किसी के लिए 
न रात चाँद-सितारों संग कोई आवारगी
न बहकी-बहकी बात कोई बहती सबा से की
न ख़यालों में कोई लाल जंगल, न दरिया,न जुगनू
न तितली,न गुल, न गुंचा और न अक्स कोई
फिर ये बेवजह सी उदासी किसलिए ?
अपना तो मोहब्बत-सा कारोबार भी नहीं !!!

Sunday, 14 August 2016

मुझको !

वक्त भी ना हुआ दवा मुझको
ज़िक्र उसका रुला गया मुझको !
साँसे बोझिल बहुत गुजरती हैं
न दो उम्र की और दुआ मुझको !
ज़िन्दगी ख़ाक न थी ख़ाक हुई
चमन क्यूँ न गुलज़ार हुआ मुझको !

Thursday, 23 June 2016

अल्ला करे !

अल्ला करे
कोई चटाए तुम्हें
बाबा जी की बूटियाँ
कोई ले जाए ..
गुलबशाँ बाबा की मजार पे
उतरवाए नजर
धूर दे तुमपे कोई
मरघट की राख सारी 

दो नजरों का जादू उतारने को
बुलाये जादूगर
कोई बाँध के टोटका
ले जाए सारे टोने-वोने
आबे-ज़मज़म से हाय
नहलाये कोई
कोई तो करे ऐसा
फूंक दे मन्तर-वंतर
के फिर कभी न
इश्कियाए कोई.. अल्ला करे !

Friday, 17 June 2016

जिस्म और लहू


आंच का दूर तक जिस्म से कोई रिश्ता नहीं
ये तो खून है जो गर्म है, उबाल रखता है !
गुस्सा आ जाए तो कैसे-कैसे बवाल रखता है
लहू के दौड़ते रहने से जिस्म दहक जाता है
छू जाए इक नज़र रेशमी तो बलक जाता है !
ये झूठ है के बदन ताप पे कभी चढ़ता है
इश्क़ सा कभी मुझपे, कभी आप पे चढ़ता है !
ये कोरी मिट्टी है, बर्फ है, पानी सा बहा जाता है
वरना कहो तुम ही ....क्या
कोई आग दूसरी आंच को राख़ करती है ?
गर करती तो ये ज़िस्म क्यूँ फ़ानी होता
इक उम्र का ही नाम क्यूँ जवानी होता ?
हाँ ! ये खून है जो उबाल रखता है
गर्म होता है तो कैसे-कैसे बवाल रखता है !

Thursday, 16 June 2016

फ़ातिहा

     
           
                                      
                       इक शाम के लिए बेहद ज़रुरी है 
                     दिन की रुख़्सती पे फातिहा पढना !

Wednesday, 15 June 2016

नींद

नींद मुझे रोज़ ख़्वाबों के जंगल फिराती है
ख्वाब मुझे रोज़ सहर के किनारे छोड़ जाते हैं !

Tuesday, 14 June 2016

ऐ वक्त !


माना के मुनासिब है 
तेरा यूँ चलते जाना 
उस रोज़ कुछ देर
ठहर जाता तो ..
तेरा क्या जाता 
कमबख्त ऐ वक़्त !

Friday, 10 June 2016

फ़ासले

नज़र मिली तो सारे फ़ासले झूठे निकले 
दिल के आबले सच्चे थे मगर गिले झूठे निकले !

Sunday, 1 May 2016

शिक़वा

अनमोल जज़्बों की तिज़ारत के गुनहगार है हम 
तो क्यूँ करें शिकवा के दर्द है बेहद औ बहुत ग़म मिला ।

Sunday, 20 March 2016

मुनासिंब !


तुमको मुनासिब नहीं लगता साथ मेरा 
हमको तुम बिन कुछ भी नहीं लगता है मुनासिब !

Saturday, 19 March 2016

मगर..

धड़क के दिल का कुछ कहना ..तो ठीक है ! मगर मचल के उसको सुनना.. हर बार अच्छा नहीं !

Tuesday, 15 March 2016

सोचते हैं !

सोचते हैं हो जाएं
बदजुबां हम भी कभी ,

पै क्या करें,
सीखे थे जो कभी
वो अदब जाता नहीं !

Friday, 11 March 2016

आँसू

तुम नज़र से यूँ गिरे ..जैसे के एक आँसू !