Tuesday, 23 July 2013

यही तो है प्यार...

प्यार है अंतर्मन का एक भाव..कोइ अनछुआ,,अनकहा पह्लु..

जो मेरे तह से निकले पूरे उद्गार से...और उतर जाये तुम्हारे तह की तह मे..

ये जो दो पिंजर देखते हो तुम..जिनसे व्यक्त करते हो अपने प्यार को...

वो प्यार जो सम्पूर्ण अभिव्यक्ति और समर्पण के बाद भी बचा रहता है ..

वो प्यार जो..सारे दांव-पेंच खेलने पे भी अधूरा ही लगता है.... और...

वो बाते प्यार की..जो खत्म होते ही लगती है..के कितना कुछ बचा है कहने  को..

क्या सिखाओगे तुम मुझे, क्या समझाउंगी मै तुम्हे..और क्या खत्म होगा ये सफर..

ये पूरा-अधूरा- अधूरा सा....और अधूरा पूरा-पूरा सा..यही तो है......प्यार !!!

No comments:

Post a Comment