
कहीं दूर क्षितिज की ओर देखते हुए..
एक-दूसरे से न कुछ कहते न सुनते
गर्म कॉफ़ी को घूंट-घूंट भरते हुए
जैसे एक प्याले में ही दो जोड़ी होंठ
अपने-अपने हिस्से का प्यार जीते हुए !

नर्म दूब पे लेटे हुए गुनगुनी धूप के साथ
मौसम की खुशबू को साँसों में भरते हुए
एक दूसरे से न कुछ कहते न सुनते
आँचल का इक टुकड़ा आँखों पे रखे हुए
जैसे एक ही छाँव में दो जोड़ी आँखें
अपने-अपने हिस्से का प्यार जीते हुए !

पहाड़ी की ढलान पे साथ चलते-चलते
बहकती पवन के झोके के साथ मुड़ते हुए
एक-दूसरे से न कुछ कहते न सुनते
कभी हाथ मिलते हुए कभी छूटते हुए
जैसे एक-दूजे के साथ में दो जोड़ी हाथ
अपने-अपने हिस्से का प्यार जीते हए..

सर्द बर्फीली रात में चाँद के साथ
अलाव की ताप जिस्म में भरते हुए
एक दूसरे न कुछ कहते न सुनते
अपनी-अपनी आंच से दूर बैठे हुए
जैसे एक जोड़ी बदन दो आत्माओं के साथ
अपने अपने हिस्से का प्यार जीते हुए..
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वाह!
ReplyDeleteKohob.....
ReplyDeleteits vry beautiful n mesmerising
ReplyDeleteg8 work chachi
congratulations
:-)
thanks all !
ReplyDelete