Wednesday 20 November 2013

ज़र्द सी एक पाती !!!

      सर्द सी एक रात में
    जर्द सी एक पाती..
  कांपती -थरथराती
  शाख से कुछ जुडी
  पर कुछ-कुछ अलग
  बेरहम हवा के रहम पर
  चंद और साँसे या आखिरी पल
  उफ़ ! टूट गया वो अंतिम तार
  लहराती हवा के झोंके के साथ
  जमीं में दफ्न होती हुई..
  शाख कुछ देर झुकी तो थी
  फिर तन गई अगले ही पल
  नयी कोंपलों के इंतज़ार में
  अगले मौसम की बहार में
  पर जर्द सी वो एक पाती..
    गुम हो गई कांपती-थरथराती. 

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