सुनाते रहते हैं मुझको सुबहो-शाम
जो कोई नहीं होगा सुनने को तो याद
आउंगी.
सुबह की ओस से शिकायतें करतें हैं
मेरी
धुंध में लिपटी हुई नहीं आउंगी तो
याद आउंगी.
गुनगुनी धूप से मद्धम होगी जो
तुम्हारी आँखें
मेरे आंचल की छाँव खोजोगे तो याद
आउंगी.
दिनभर की खबर सुनाती थी मैं विविध
भारती सी
किसी चिड़िया को चहकते देखोगे तो
याद आउंगी.
चुपके से कानों में जो कह देती थी
प्यारी बातें
हवा जब शाम ढले छू के कुछ कह
जायेगी तो याद आउंगी.
रात जब मरमरी बाहों को बेचैन
खोजोगे तुम
अजनबी तकिये पे आंसू बहाओगे तो याद
आउंगी.
किसी सावन ..कोई पतझड़ ..किसी बहार
..
मौसम के किसी भी रंग से गुजरोगे तो
याद आउंगी.
अभी रोज गुजरते हो तुम मुझसे एक
आदत की तरह
जब मिट्टी में मिट्टी सी मिल
जाउंगी तो याद आउंगी !
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