Friday 9 August 2013

बैठे हैं...

पलकों के खोल में छुपे खाब हर हाल सच होने की जिद् किये बैठे हैं.. 
न चाँद खिलेगा न तारों की बारात होगी..आज बादल बच्चों सी जिद् किये बैठे हैं..
जब जरा रूठते हैं किसी बात पे वो..अपने हमदर्द से ही मुंह मोड़ बैठे हैं..
सहरा में आज हम समन्दर बनाने के लिए आंसूओ का सैलाब लिए बैठे हैं.

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