Tuesday 13 August 2013

भोर की बरखा

भोर की आँख खुलने से पहले..
आसमान के शामियाने तले..
न जाने किसकी बारात चली..
बादलों ने टकरा के सुर निकाले
बिजलियाँ चमक के तस्वीरें लेती रही..
बरस के सावन सींचता रहा..मौसम.
एक इंद्रजाल -सा फैलाव है...किसी ..
मोहपाश में बंधी कायनात है..
ये कौन से दो दिल मिल रहे हैं ..
आज भोर  की छांव में  !

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