शाम ढले सितारों जड़े आसमां के तले
एक बजरा नदी की लहरों पे हिलोरें लेता
हुआ...
दो जिस्म महकते से..बजरे के भीतर पर्दों के ओट में..
बजरे के रोशनदान से चाँद झांकता ..मुस्कुराता हुआ सा..
झील के लहरों पे बलखाता हुआ..गुजरता हुआ....बजरा..
और बजरे के भीतर दो सुलगते हुए दिल...प्यार से लबरेज..
चांदनी से भीगे,सफ़ेद,नर्म बर्फ की चादरों में लिपटे पहाड़..
और जाफरान के खेतों से गुजरता हुआ बजरा..बंजारा सा..
सब मूक देखते रहे दो आत्माओं का घुलना एक-दुसरे में..
दो जिस्म महकते से..बजरे के भीतर पर्दों के ओट में..
बजरे के रोशनदान से चाँद झांकता ..मुस्कुराता हुआ सा..
झील के लहरों पे बलखाता हुआ..गुजरता हुआ....बजरा..
और बजरे के भीतर दो सुलगते हुए दिल...प्यार से लबरेज..
चांदनी से भीगे,सफ़ेद,नर्म बर्फ की चादरों में लिपटे पहाड़..
और जाफरान के खेतों से गुजरता हुआ बजरा..बंजारा सा..
सब मूक देखते रहे दो आत्माओं का घुलना एक-दुसरे में..
इतने ही गवाह थे -शाम,सितारे,आसमां,चाँद,झील,पहाड़,जाफरानी
खेत और बजरा !
In simple words... good one...!
ReplyDeleteये कश्मीर की यादें हैं या कल्पना !
ReplyDeleteअगर कल्पना है तो कमाल है !