Sunday 22 December 2013

सांझ का तारा ***


अंधियारे के दामन से जाने कैसे

सरक गया इक चंचल तारा  !

चांदी के तारों में गूंथा ..उजियारा..

चमकीला.. लहकता ..मचलता.

नन्हे बच्चे सा..जैसे आकाश की

गोद में खेलता सांझ का फूल.

वो चमके जैसे आँखों में उम्मीदों की धूप..

जैसे रात चढ़े चाँद का रूप.

आसमान की छत पे अकेला..

खोजता-फिरता संगी-साथी..कुछ बाराती    

वो प्रेम का तारा ..अपने कुनबे से दूर-दूर..

मेरी आँखों के आस-पास .

दो राहों पे पाँव है उसके ..एक

गुजरती शाम की गली दूजे रात की राह.

भटकता -फिरता है ऐसे जैसे

किसी मासूम को माँ के आँचल की चाह.

फिर भी चमक-चमक कर दिखलाता है

भूले राही को मंजिल का रस्ता .

सांवली आकाशी छतरी के चौराहे पे

दिशा बताता एक सितारा अलमस्ता !

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