क़ागज़ सींचा मैने !
Tuesday, 3 December 2013
***इक बूँद ***
रात तुम्हे याद करते हुए
आंसू की एक बूँद गिरी
समन्दर में.... और खो गयी
लोग खोजते हैं उसे
,
मगर
अब तक मिली नहीं वो
कोई जाओ कह दो उन्हें
मिल जाएगी वो इक बूँद
उस रोज जब ....प्यार
नहीं रह जायेगा मेरे दिल में
तुम्हारे लिए !
1 comment:
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
6 December 2013 at 22:27
वाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
इसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
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वाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं