Wednesday 18 December 2013

\\ सर्दियाँ और महंगी धूप //


अब सर्दियों की सरगोशी शुरू हो गई होगी न..
एक धुंध सी बिखरी होती होगी... सुबह के साथ.
और धूप कितनी महंगी होगी इन दिनों,क्या भाव होंगे ?
वो धूप जैसे अधपकी सी ही पतीले से उतार दी गयी हो,
उसपे भी कुछ छन कर आती होगी गुलमोहर की छाँव से. 
कैसे धुएं के छल्ले से निकलते होंगे मुँह से हर बात पे .. 

पश्मीना के शालों में लिपटे हुए लोग छतों पे सूरज समेटते होंगे.
रंग-बिरंगे डहलिया-गुलदाउदी कैसे मुस्कुराते होगें ओस में भीग कर
गर्म उबलती चाय लबों तक आते-आते ही सर्द हो जाती होगी..
दुपहर अब खुल के नहीं बरसती होगी, शाम आते ही गुजर जाती होगी
रात जागती होगी अलाव के साथ फिर दुबक जाती होगी नर्म रजाइयों में.


मगर यहाँ जाड़ों का मौसम लिपटा है, इक कागज़ के टुकड़े में
 कुछ अल्फाजों के साथ !




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