Monday 9 December 2013

निर्झर प्रेम =====

जब मद्धम सी आंच में रात पकती है
सितारे सुलग उठते हैं जब सारे के सारे
चाँद..बादल..हवा और शरबती आँखों वाला आसमां
इनके साथ जब झुक-झूमती है धरती और मौसम
ऐसे में ही अपनी चांदनी से धुली आँखों से ...

तुम्हरी मुखरता जब कभी मुझे आवाज देती है
एक लहक उठती है उन्मत्त ह्रदय के छोर पे
और जाग जाता है निर्झर प्रेम का कुंवारापन !


1 comment:

  1. क्या बात वाह! असमनवा में काहे लड़ रहे हैं ये?

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