
कोने में खड़ा, जिसके गुलाबी दीवारों पे ..
मैं चिपकाती थी कागज की रंगीन तितलियाँ .
दरवाजे पे लिख रखा था मैंने नाम मेरा ...
और एक ताकीद "आने से पहले आहट कीजे"
उसपे एक पिघलते नीलम सा रेशमी पर्दा.
एक दरीचा,जिसपे आती थी फुदकती गिलहरी
हवाएं वही बैठी पहरों बातें करती मुझसे
वहीँ उतरता चाँद मेरे खयालों के सहारे.
कुछ किताबों के पुलिंदे मेज पे, एक कलम को ..
सीने से लगाये सुनहरी डायरी, कुछ गुलमोहर के फूल
और कुछ मुक्कमल गजलों के भीगे अफ़साने .
रंग-बिरंगी चमक के साथ कोने में सजा एक आईना..
जो मुझे देखता था छुप-छुप..मैं जब झाँकती थी उसमे ..
तो वहां कोई नहीं होता था..मेरे सिवा .
मगर जब बिछड़ा वो कमरा तो दे गया यादें
और करता रहा इंतज़ार मेरे लौटने का
मेरे बचपन की तस्वीरें सीने से लगाये .
दिन गुजरे,साल-दर-साल निकलते चले गए ..
नाम के कुछ अक्षर मिट गए,आईना अपनी चमक खो बैठा
किताबें बुजुर्ग हो गईं पर दरवाजा अब भी इंतज़ार में है .
लेकिन वो कमरा पुराना हो गया या कहिये बूढ़ा हो गया ..
ख़यालों की भीड़ में मैं उसे याद करती हूँ .. और
वो भी तन्हा मुझे याद करता है ...वो गुलाबी कमरा !!!
kya baat
ReplyDelete