जुगुनू ने अपनी चमकती रौशनी बिखेरी अन्धकार में..
जैसे चुनौती दे रहा हो अपने गुरुर में ....जलते- बुझते हुए.सा..
अन्धकार ने गंभीरता लपेट रखी है...अपनी गहरी मुस्कानों में..
अन्धकार ने कहा- मुझसे ही है अस्तित्व तुम्हारा..निकलो !
मेरे दामन से कभी उजली धूप में.....यूँ ही चमक के दिखाओ..
हर हाल जरुरी है दो पहलूओं का होना..गम ही दिखाता है....
खुशियों के चौराहे, अन्धकार ही देता है रौशनी की कद्र..
निराशाओं ने ही दी है आशाओं को दस्तक .
बहुत खूब.... कभी अपने को छोटा ना समझने की सीख और आत्मविश्वास इस बात का, की हर एक में है कुछ खास !
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