•कल शाम समन्दर से की ढेर सी बातें और ले आई कुछ सौगातें......... हम -दोनों अलग फिर भी एक साथ ---मैं सरसों के रंग में और वो कुछ आकाशी..हलके हरेपन के साथ...
किनारे खड़े अजनबी सा मैंने देखा उसे के चुपके से उसकी एक लहर ने पाँव में चुटकी काटी के --"आ चल खेलें"...जैसे नई जगह कोई सहृदयी अपना बना ले.......फिर वो अपनी लहरों के साथ उलटे पाँव पीछे लौटा और मैं दौड़ी उसकी ओर..और जैसे ही मैं उसके पाले में घुसी.........उसने घेर लिया मुझे अपनी पूरी मौजों के साथ ..जैसे हम दोनों कबड्डी खेल रहे हों...कई बार उसने मेरे पाँव कसे पर वो लकीर पार कर मैं वापस अपने पाले में थी. अब वो मुझे जान गया था और मैं उसे..तो जरा वो नजदीकियां बढाने लगा .....मैं समझ गयी उसके इरादे...और खेल वहीँ छोड़ के लौट आई किनारे अकेले खेलने....रेत पर अपने पाँव के निशान बनाते मैं आगे बढती रही और वो लहर भर-भर के मिटाता रहा उन्हें......जैसे कह रहा हो...
के--'न खेलब न खेले देब' ...अब वो मुझे चिढ़ा रहा था....मैंने सोचा ये खेलने नहीं देगा अब तो कहीं और चलूँ....तभी याद आया.............अरे.....सू..sssरअ ज (सूरज).........
जब तक दौड़-भाग के पहुंची वो (सूरज) जा चुका था..वहीँ पत्थरों पे बैठ के देखा मैंने उसका आसमान में फैला सिंदूरी रंग....सचमुच जैसे किसी ने सिंदूर से होली खेली हो .....अहा !!
धीरे-धीरे वो रंग भी फीका पड़ने लगा और उतर आया आसमां में षष्ठी का चाँद अधूरा सा......
जिस के इन्तजार में बैठा था समन्दर ठुड्डी पे हथेली टिकाये .............कब से बेचैन......चांदनी उतर कर फैलती रही समंदर के तह तक.....उसके अंतर्मन के किसी एकांत तक .. ..फिर उन्हें....वहीँ छोड़ कर मैं पलटी और देखा........रौशनी से नहाया शहर .......मैं भी लौट आई अपने पूरे चाँद के साथ अपनी छत पर !
जब तक दौड़-भाग के पहुंची वो (सूरज) जा चुका था..वहीँ पत्थरों पे बैठ के देखा मैंने उसका आसमान में फैला सिंदूरी रंग....सचमुच जैसे किसी ने सिंदूर से होली खेली हो .....अहा !!
धीरे-धीरे वो रंग भी फीका पड़ने लगा और उतर आया आसमां में षष्ठी का चाँद अधूरा सा......
जिस के इन्तजार में बैठा था समन्दर ठुड्डी पे हथेली टिकाये .............कब से बेचैन......चांदनी उतर कर फैलती रही समंदर के तह तक.....उसके अंतर्मन के किसी एकांत तक .. ..फिर उन्हें....वहीँ छोड़ कर मैं पलटी और देखा........रौशनी से नहाया शहर .......मैं भी लौट आई अपने पूरे चाँद के साथ अपनी छत पर !
समंदर से बातें करना सब के बस की बात भी नहीं है। समंदर के पास जाकर मैं तो मस्ती मे डूब जाता हूं और आपने वहां पहुंच कर समंदर की गहराई नापने की कोशिश की। बहुत सुंदर
ReplyDeletethanks ! समन्दर बहुत आकर्षक होता है..वो इतने सारे खयाल दे ही गया.
Deleteसमंदर के किनारे आती हुई लहरों को ..बैठ के देखो लगता है जैसे कोई रेशमी आँचल परत दर परत... आपकी तरफ़ ही चला आ रहा हो ......
Deleteसाथ में हर लहर कुछ कह भी जाती है..... और सब आप के कदमो को छू के अद्रशय हो जाता है.......
समंदर कितना कुछ दे देता है....यादे बनाने के लिये ....
बहुत ही खुबसूरत बात !
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