1-उनींदी आँखों से
देखा अलसाये सूरज को..
अंगड़ाईयाँ लेती
पवन ..सन्दली सी...
कुछ ओस की
झिलमिलाती बूँदें कलियों पे..
और चहकती गौरैया
आँगन में..
एक जाफरानी चाय
का प्याला..
और कुछ नगमें
गुलज़ार की संजीदा आवाज़ में..
कुछ नई-नई सुबह है आज या
कुछ नया सा मुझमे..
2-सिन्दूर सा बिखरा है आसमान में..
कतरा-कतरा शाम में पिघलता
सूरज..
ठहरी सी हवा..ठंडे झोकों
के इन्तजार में..
लौटे पंछी अपने दरीचों
में..बिखरा के दाने आँगन में..
प्रकृति की ये सुबह-ओ-शाम
की जादूगरी.....
फिर ले गया कोई और एक
बेबाक सा दिन...
मेरे आँचल से ..
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