चनाब बहती रही रोज की तरह..
अपने दो जुदा-जुदा किनारों के साथ
उसके किनारे तो नहीं मिले कभी..
पर मिलते देखा उसने उन दोनों को..
एक मिर्जा ! जो आया परदेस से..खोजने अपना यार..
एक हीर ! जो कच्चे मिटटी के घड़ों में भर ले जाती सांचा प्यार
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
उसी की मिटटी ,उसी का पानी...उससे ही बनते घड़े
पर बनाते दो सजीले सुघढ़ हाथ.. हीर के
और रांझा चराता भेंडे चनाब के किनारे
अपने दो जुदा-जुदा किनारों के साथ
उसके किनारे तो नहीं मिले कभी..
पर मिलते देखा उसने उन दोनों को..
एक मिर्जा ! जो आया परदेस से..खोजने अपना यार..
एक हीर ! जो कच्चे मिटटी के घड़ों में भर ले जाती सांचा प्यार
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
उसी की मिटटी ,उसी का पानी...उससे ही बनते घड़े
पर बनाते दो सजीले सुघढ़ हाथ.. हीर के
और रांझा चराता भेंडे चनाब के किनारे
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
उसके पानी में पाँव डाले बिताये जाने कितने दिन
उसके पानी में देखा दोनों ने चाँद जाने कितनी रातें
उसके पानी ने देखा दो अक्स कभी दूर तो कभी पास
उसके पानी में पाँव डाले बिताये जाने कितने दिन
उसके पानी में देखा दोनों ने चाँद जाने कितनी रातें
उसके पानी ने देखा दो अक्स कभी दूर तो कभी पास
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
उसके मीठे पानी से धोये खारे आंसूं दोनों ने
उसके मीठे पानी को हाथ में ले उठाई
सौगंध जुदा न होने की दोनों ने..
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
रात अंधेरी कच्चे घड़े के सहारे पार जाना था उसे..
मिटटी खो गयी मिटटी में...सब रंग पानी हो गया
हीर खो गयी रांझे में,दोनों चनाब हो गए..
फिर चनाब बहती रही रोज की तरह !
उसके मीठे पानी से धोये खारे आंसूं दोनों ने
उसके मीठे पानी को हाथ में ले उठाई
सौगंध जुदा न होने की दोनों ने..
और चनाब बहती रही रोज की तरह..
रात अंधेरी कच्चे घड़े के सहारे पार जाना था उसे..
मिटटी खो गयी मिटटी में...सब रंग पानी हो गया
हीर खो गयी रांझे में,दोनों चनाब हो गए..
फिर चनाब बहती रही रोज की तरह !
उम्मीद है, चिनाब बहती रहे रोज...
ReplyDeleteक्योकि अब भी उसकी सदा बहते रहने में खुद की कामयाबी देख रहे हैं, ना जाने कितने मिर्जा और हीर........