नहीं..साबित कर पाया मै.......तुम सबके प्रति अपने प्रेम को..
जन्म देने वाले माता-पिता को..अपने खून के संबंधों को..
अपने जीवन- साथी को.......यहाँ तक की अपने जने बच्चो को भी....
नहीं साबित..कर पाया मैं....क्या करता...
कोई सुबूत ही नहीं था...मेरी मूक भावनाओ के लिए...
कैसे साबित करता मैं.....के कब-कहाँ- कहाँ मेरी प्रार्थनाओं में तुम थे..
मैंने हर उन टोटकों का सहारा लिया..जिससे तुम्हारा जीवन सुरक्षित रहे..
फिर भी नहीं साबित कर पाया मैं...
''मानवीय भूलों से बना मैं..इन देवत्व पुरुषों को ..
इस नश्वर संसार में कुछ भी नहीं साबित कर पाया मैं.''
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