१- कुछ मेहमां आये हैं..परदेस में परदेस से..
कोई दोस्ती का फलसफा नहीं उनका..
बस आये हैं ...हमारी मेजबानी देखने..
दाने डाल रखे हैं..पानी से भरी प्याली भी..
जरा वो चौकन्ने से हैं..मेरी हर आहट पे
वो मुझसे मिलते नहीं..साथ बैठते नहीं..
बस आते हैं यूँ ही और हमेशा ही ..
अपने हिस्से के दाने ले जाते हैं..
जाने कब का उधार खाता है,जो घट रहा है ,
या मैं दे रहीं हूँ उधार उन्हें ..कुछ पता नहीं..
जो भी है..बस अच्छा ये है के उन्हें ..
कोई शिकायत नहीं मेरी मेजबानी से..
और मुझे कोई तकलीफ नहीं ऐसी मेहमानी से.
२-मेरी छत के एक कोने में..पड़ी है दो बेंत की कुर्सियां,
कुछ अधलेटी सी..जैसे समन्दर किनारे धूप सेंक रही हों..
बैठी रहती हैं दोनों करीब ऐसे..जैसे गुप-चुप बातें करती हों
दो सखियाँ राजदारी की....पुरानी यादें ताज़ा करती हुई
कभी पास पड़े होते हैं..दो चाय के प्याले कभी भरे तो ..
कभी खाली और कभी चुस्कियां लेते हुए...हौले-हौले..
वहीँ दुसरे कोने में पड़ा वो झूला जो यूँ ही अकेले झूलता है
जैसे कोने में खड़ा कोई बुजुर्ग मुस्कुराता है बच्चों के खेल पे.
इनसे रौनक है मेरे घर में...घर उदास नहीं होता अकेले में भी.
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